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मै नर भी – नारी भी

-प्रोमिला देवी सुदर्शन हुईद्रोम

 

अंतर केवल जो लिंग का

भेद मुझे क्या दिखलाते हो

मै नर भी – नारी भी

हर्ष – हर्ष – हृदय मेरा –

मैं सौरभ – नभ में बिखराती हूँ –

 

 

वंश से नहीं – वंशज से न सही

श्रेणी ये उच्चतम

मै नर भी – नारी भी

अर्धनारीश्वर कहलाती हूँ –

 

प्रमुदित जो हो ये हृदय मेरा

तो विस्मय नहीं – विस्तृत हूँ

संशय ये नहीं – के नारी हूँ

मै नर भी – नारी भी

 

ये आकाश – निरंतर मेरा

 

तू मुझसे ही – जो माँ तेरी

ये बहन – बेटी – आज्ञा तेरी

पथ – पथ पर चलना सिखाया है

ये बेटी – ये माँ – आशा तेरी

 

ये कहा हुई भूल तुझसे

ये कहाँ हुआ भेद – अंतर निरंतर

आक्षेप मन – आक्षेप जीवन

त्रास – त्रास कर देती है

खौफ ये कब हुआ तुझसे

घृणा पर मन रुकता नहीं –

 

भयावह कब हो चला तू

के इस अति निकृष्टतम पर उतर आए

ये कहा हुई भूल तुझसे –

के हुआ भेद –

निष्पथ  पर चलकर –

 

के विचलित न होता है क्या

इस अति दृष्टतम पथ पर चलकर

तू नर ही है – ये नारी से उत्पन्न

दोष में किसको दूँ –

नर को – या नारी को

 

पुरुष तू नहीं – कहाँ है वो पौरुष  –

व्याकुल न होता मन तेरा

तू नर भी – मैं नारी भी ।

 

घर्षण हो – अब प्रारंभ

तेज तू मेरा देखेगा

मैं काली भी – चंडी भी

नर – नारी – तू आप ही –

 

अब न रुके संहार मेरा

दृढ़ भी – निश्चय भी

ये विशाल रूप – रूपांतर मेरा  –

मै नर भी –  नारी भी

अर्धनारीश्वर कहलाती हूँ –

 

अब देख ये रौद्र रूप मेरा

संघर्ष यहीं पर होता है –

अब हो अंत – दुष्कर्म तेरा

देख – कहाँ ले चला गंतव्य तेरा –

 

मै नर भी – नारी भी –

 

 

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